सोचता हूँ लहू तुम्हारा मैं गरमाऊँ किस तरह… ?

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सोचता हूँ लहू तुम्हारा मैं गरमाऊँ किस तरह ? ऐ मेरी कौम तुम्हे आख़िर मैं जगाऊँ किस तरह

सियासत ने बदला मेंयार मुल्क में हुक्मरानी का

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सियासत ने बदला मेंयार मुल्क में हुक्मरानी का देश चलने लगा है पा कर इशारे अमीर घरानों से,

है बहुत अँधेरा अब सूरज निकलना चाहिए…

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है बहुत अँधेरा अब सूरज निकलना चाहिए जैसे भी हो अब ये मौसम बदलना चाहिए, रोज़ जो चेहरे

चेहरे का ये निखार मुक़म्मल तो कीजिए…

चेहरे का ये निखार

चेहरे का ये निखार मुक़म्मल तो कीजिए ये रूप ये सिंगार मुक़म्मल तो कीजिए, रहने ही दे हुज़ूर

फ़लक पे चाँद के हाले भी सोग करते हैं

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फ़लक पे चाँद के हाले भी सोग करते हैं जो तू नहीं तो उजाले भी सोग करते हैं,

खून अपना हो या पराया हो….

खून अपना हो या

खून अपना हो या पराया हो नस्ल ए आदम का खून है आखिर,   जंग मशरिक़ में हो

एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब

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एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब कोई बतलाये कहाँ गायब हुआ है इन्किलाब, एक वो भी

गुलों में रंग न खुशबू, गरूर फिर भी है…

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गुलों में रंग न खुशबू, गरूर फिर भी है नशे में रूप के वो चूर-चूर फिर भी है,

तुम जैसे तो लाखो ही थे, है और भी आएँगे…

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तुम जैसे तो लाखो ही थे, है और भी आएँगे मगर हम जैसे तुम्हे बहुत कम ही मिल

मैंने पल भर में यहाँ लोगो को बदलते हुए देखा है

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मैंने पल भर में यहाँ लोगो को बदलते हुए देखा है ज़िन्दगी से हारे हुए लोगो को जीतते