मसअला हुस्न ए तख़य्युल का है न इल्हाम का है
मसअला हुस्न ए तख़य्युल का है न इल्हाम का है ये फ़साना ज़रा मुश्किल दिल ए नाकाम का
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मसअला हुस्न ए तख़य्युल का है न इल्हाम का है ये फ़साना ज़रा मुश्किल दिल ए नाकाम का
हमारी वजह ए ज़वाल क्या है ? सवाल ये है हराम क्या है, हलाल क्या है ? सवाल
बुग्ज़ ए इस्लाम में पड़े पड़े ही यहाँ कितनो के क़िरदार गिरे है, सभी मुन्सफ़ गिरे, मनसब गिरे
कितनी मोहब्बतों से पहला सबक़ पढ़ाया मैं कुछ न जानता था सब कुछ मुझे सिखाया, अनपढ़ था और
नेक बच्चे दिल से करते हैं अदब उस्ताद का बाप की उल्फ़त से बेहतर है ग़ज़ब उस्ताद का,
दरियाँ का शोर मचाना और समंदर का ख़ामोश रहना वक़्त आने पर हर एक के हुनर ए खास
दिल के लूट जाने का इज़हार ज़रूरी तो नहीं ये तमाशा सर ए बाज़ार ज़रूरी तो नहीं, मुझे
हमारे सब्र के दामन को तार तार न कर निगाह ए जोक तलब इतना बे क़रार न कर,
मेरी मुहब्बत मेरे जज़्बात सिर्फ़ तुम से हैं मेरे हमदम मेरी क़ायनात सिर्फ तुम से हैं, गैर महरम
फ़लक का हर सितारा रात की आँखों का मोती है जिसे शबनम सहर की शोख़ किरनों में पिरोती