तन्हा सफ़र में खुद को यूँ ही चलते देखा
तन्हा सफ़र में खुद को यूँ ही चलते देखा भीड़ भरी दुनियाँ में खुद को संभलते देखा, ना
Poetries
तन्हा सफ़र में खुद को यूँ ही चलते देखा भीड़ भरी दुनियाँ में खुद को संभलते देखा, ना
तेरी जुदाई ने ये क्या बना दिया है मुझे मैं भी जिस्म था साया बना दिया है मुझे,
न वो मिलता है न मिलने का इशारा कोई कैसे उम्मीद का चमकेगा सितारा कोई ? हद से
युसुफ़ न थे मगर सर ए बाज़ार आ गए ख़ुश फहमियाँ ये थी कि ख़रीदार आ गए, आवाज़
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा, किस
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे चाँद के हमराह हर शब सफ़र करते रहे, रास्तों का
वो जो दिल में तेरा मुक़ाम है किसी और को वो देना नहीं, वो जो रिश्ता तुझ से
दिल की दुनिया में दुनिया न आये कभी मेरे मौला ये दुनिया न भाये कभी, जिस को क़ुरआँ
लिबास तन से उतार देना, किसी को बांहों के हार देना फिर उसके जज़्बों को मार देना, अगर
मुक़म्मल दो ही दानों पर ये तस्बीह ए मुहब्बत है जो आये तीसरा दाना ये डोरी टूट जाती