जब हम हुदूद ए दैर ओ हरम से गुज़र गए
जब हम हुदूद ए दैर ओ हरम से गुज़र गए हर सम्त उन का जल्वा अयाँ था जिधर
Poetries
जब हम हुदूद ए दैर ओ हरम से गुज़र गए हर सम्त उन का जल्वा अयाँ था जिधर
दिल में बंदों के बहुत ख़ौफ़ ए ख़ुदा था पहले ये ज़माना कभी इतना न बुरा था पहले,
कहाँ कहाँ न गई मेहरबान की ख़ुशबू ज़माने भर में है उर्दू ज़बान की ख़ुशबू, बदन से जिस
हर फ़ित्ना ओ तफ़रीक़ से बेज़ार हैं हम लोग साइल हैं मोहब्बत के तलबगार हैं हम लोग, हिन्दू
मुसलमाँ और हिन्दू की जान कहाँ है मेरा हिन्दोस्तान ? मैं उस को ढूँढ रहा हूँ, मेंरे बचपन
मुश्किल में है जान बहुत जान है अब हैरान बहुत, उस पत्थर दिल इंसाँ पर होते रहे
अगर है मंज़ूर ये कि होवे हमारे सीने का दाग़ ठंडा तो आ लिपटिए गले से ऐ जाँ
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में किस की बनी है आलम ए ना पाएदार में, इन
कोशिश के बावजूद ये इल्ज़ाम रह गया हर काम में हमेशा कोई काम रह गया, छोटी थी उम्र
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है, इतनी ख़ूँ-ख़ार