नसीम ए सुबह गुलशन में गुलो से खेलती होगी
नसीम ए सुबह गुलशन में गुलो से खेलती होगी किसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी, तुम्हे
Occassional Poetry
नसीम ए सुबह गुलशन में गुलो से खेलती होगी किसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी, तुम्हे
किस एहतियात से उसने नज़र बचाई है ज़माना अब भी समझता है आशनाई है, मेरे अज़ीज़ है इसका
उम्र भर चलते रहे हम वक़्त की तलवार पर परवरिश पाई है अपने ख़ून ही की धार पर,
जिस तरफ़ चाहूँ पहुँच जाऊँ मसाफ़त कैसी मैं तो आवाज़ हूँ आवाज़ की हिजरत कैसी ? सुनने वालों
बात करते है ख़ुशी की भी तो रंज़ के साथ वो हँसाते भी है ऐसा कि रुला देते
हुस्न ए मह गरचे बहंगाम ए कमाल अच्छा है उससे मेरा मह ए ख़ुर्शीद जमाल अच्छा है, बोसा
जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे ?
ज़िन्दगी की कशमकश से परेशान बहुत है दिल को न उलझाओ ये नादान बहुत है, यूँ सामने आ
किसी दरबार की आमीन भरी खल्वत में ऐन मुमकिन है तुम्हे मेरा पता मिल जाए, ये भी हो
महफ़िले ख़्वाब हुई रह गए तन्हा चेहरे वक़्त ने छीन लिए कितने शनासा चेहरे, सारी दुनियाँ के लिए