अब तरसते हो कि बच्चे मेरे बोले उर्दू
अब तरसते हो कि बच्चे मेरे बोले उर्दू उन्हें अफरंग बनाने की ज़रूरत क्या थी ? आज रोते
Occassional Poetry
अब तरसते हो कि बच्चे मेरे बोले उर्दू उन्हें अफरंग बनाने की ज़रूरत क्या थी ? आज रोते
औरों की प्यास और है और उसकी प्यास और कहता है हर गिलास पे बस एक गिलास और,
जंग जितनी हो सके दुश्वार होनी चाहिए जीत हासिल हो तो लज़्ज़तदार होनी चाहिए, एक आशिक़ कल सलामत
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रखा है मगर चराग़ ने लौ को सँभाल रखा है, मोहब्बतों में तो
वो हँस के देखती होती तो उस से बात करते कोई उम्मीद भी होती तो उससे बात करते,
उड़ते हैं गिरते हैं फिर से उड़ते हैं उड़ने वाले उड़ते उड़ते उड़ते हैं, कोई उस बूढे पीपल
तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने जहाँ बनाया कैसी हसीं ज़मीं बनाई क्या आसमां बनाया, मिट्टी से बेल बूटे
जी भर कर रोने को करता है दिल आज पलकें भिगोने को करता है दिल, नहीं मालूम कुछ
इलाज़ ए शीशा ए दिल करूँ मिले जो शीशा गर कोई कोई मिला नहीं इधर, मिलेगा क्या उधर
जब इक्कीस बरस गुज़रे आज़ादी ए कामिल को तब जा के कहीं हमको ‘ग़ालिब’ का ख़याल आया, तुर्बत