ये किन ख़यालों में खो रहे हो नई है…
ये किन ख़यालों में खो रहे हो नई है बुनियाद ए आशियाना चमन की तामीर इस तरह हो
Occassional Poetry
ये किन ख़यालों में खो रहे हो नई है बुनियाद ए आशियाना चमन की तामीर इस तरह हो
रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई, डरता हूँ
वो दिल नवाज़ है लेकिन नज़र शनास नहीं मेरा इलाज मेरे चारागर के पास नहीं, तड़प रहे हैं
वो इस अदा से जो आए तो क्यूँ भला न लगे हज़ार बार मिलो फिर भी आश्ना न
वो साहिलों पे गाने वाले क्या हुए वो कश्तियाँ चलाने वाले क्या हुए ? वो सुब्ह आते आते
जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला मेरे स्वागत को हर एक जेब से खंजर
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रूबरू करते हम और बुलबुल ए बेताब गुफ़्तुगू करते, पयाम्बर न मयस्सर
कुछ भी था सच के तरफ़दार हुआ करते थे तुम कभी साहब ए किरदार हुआ करते थे, सुनते
मुसाफ़िर भी सफ़र में इम्तिहाँ देने से डरते हैं मोहब्बत क्या करेंगे वो जो जाँ देने से डरते
नींदों का बोझ पलकों पे ढोना पड़ा मुझे आँखों के इल्तिमास पे सोना पड़ा मुझे, ता उम्र अपने