वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर…

wahi hai wahshat wahi hai nafrat aakhir

वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब ? इंसाँ इंसाँ बहुत रटा है

वही दर्द है वही बेबसी तेरे गाँव में मेरे…

wahi dard wahi bebasi tere gaanv mere shahar me

वही दर्द है वही बेबसी तेरे गाँव में मेरे शहर में बे गमो की भीड़ में आदमी तेरे

ख़ुशी जानते हैं न ग़म जानते हैं…

khushi jaante hai na gam jaante hai jo unki

ख़ुशी जानते हैं न ग़म जानते हैं जो उनकी रज़ा हो वो हम जानते हैं, जो कुछ चार

ये मरहले भी मोहब्बत के बाब में आए

ye marhale bhi mohabbat ki raah me aaye

ये मरहले भी मोहब्बत के बाब में आए बिछड़ गए थे जो हमसे वो ख़्वाब में आए, वो

तेरे पैकर सी कोई मूरत बना ली जाएगी

tere paikar si koi murat bana li jayegi

तेरे पैकर सी कोई मूरत बना ली जाएगी दिल के बहलाने की ये सूरत निकाली जाएगी, कौन कह

ग़म के हर एक रंग से मुझको शनासा कर

gam ke har ek rang se mujhko

ग़म के हर एक रंग से मुझको शनासा कर गया वो मेरा मोहसिन मुझे पत्थर से हीरा कर

ग़म है वहीं प ग़म का सहारा गुज़र गया

gam hai wahi pa gam ka sahara guzar

ग़म है वहीं प ग़म का सहारा गुज़र गया दरिया ठहर गया है किनारा गुज़र गया, बस ये

दिल के बहलाने का सामान न समझा जाए

dil ke bahlane ka samaan na

दिल के बहलाने का सामान न समझा जाए मुझको अब इतना भी आसान न समझा जाए, मैं भी

मैं एक काँच का पैकर वो शख़्स पत्थर था

main ek kaanch ka paikar wo shakhs patthar tha

मैं एक काँच का पैकर वो शख़्स पत्थर था सो पाश पाश तो होना मेरा मुक़द्दर था, तमाम

ख़ुद आगही का अजब रोग लग गया है

khud aagahi ka azab rog

ख़ुद आगही का अजब रोग लग गया है मुझे कि अपनी ज़ात पे धोका तेरा हुआ है मुझे,