इंसानी सोच का मौसम बदलता रहता है
इंसानी सोच का मौसम बदलता रहता है फ़ितूरी दिमाग बेकाम भी चलता रहता है, ज़रा सी ओट ही
Occassional Poetry
इंसानी सोच का मौसम बदलता रहता है फ़ितूरी दिमाग बेकाम भी चलता रहता है, ज़रा सी ओट ही
आरज़ी ताक़तें तुम्हारी है पर ख़ुदा हमारा है अपने अक्स पर न इतराओ आईना हमारा है, तेरी रज़ा
उम्र तमाम गुज़र जाती है आशियाँ बनाने में ज़ालिम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में, और जाम टूटेंगे
मैं सुन रहा हूँ जो दुनियाँ सुना रही है मुझे हँसी तो अपनी ख़ामोशी पे आ रही है
कैसी महफ़िल है ज़ालिम तेरे शहर में यहाँ हर कोई ही डूबा हुआ है ज़हर में, एक बच्ची
चेहरे की हसी भी दिखावट सी हो रही है असल ज़िन्दगी भी बनावट सी हो रही है, अनबन
अमूमन मेरी हसरत को चाहत का नाम दे गये लोग जीश्त को इन्तेहा ए आशिकी का पैग़ाम दे
ख़्वाबो को मेरे प्यार की ताबीर बख्श दे दिल को मेरे इश्क़ की ज़ागीर बख्श दे, कब से
उलझे काँटों से कि खेले गुल ए तर से पहले फ़िक्र ये है कि सबा आए किधर से
वही हुस्न ए यार में है वही लाला ज़ार में है वो जो कैफ़ियत नशे की मय ए