इंसानी सोच का मौसम बदलता रहता है

insani soch ka mausam badalta rahta hai

इंसानी सोच का मौसम बदलता रहता है फ़ितूरी दिमाग बेकाम भी चलता रहता है, ज़रा सी ओट ही

आरज़ी ताक़तें तुम्हारी है पर ख़ुदा हमारा है

aarzi taaqte tumhari hai

आरज़ी ताक़तें तुम्हारी है पर ख़ुदा हमारा है अपने अक्स पर न इतराओ आईना हमारा है, तेरी रज़ा

उम्र तमाम गुज़र जाती है आशियाँ बनाने में

umr tamam guzar jaati hai aashiyaan

उम्र तमाम गुज़र जाती है आशियाँ बनाने में ज़ालिम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में, और जाम टूटेंगे

मैं सुन रहा हूँ जो दुनियाँ सुना रही है मुझे

main sun raha hoo jo duniyan suna rahi hai

मैं सुन रहा हूँ जो दुनियाँ सुना रही है मुझे हँसी तो अपनी ख़ामोशी पे आ रही है

कैसी महफ़िल है ज़ालिम तेरे शहर में…

kaisi mahfil hai zalim tere shahar me

कैसी महफ़िल है ज़ालिम तेरे शहर में यहाँ हर कोई ही डूबा हुआ है ज़हर में, एक बच्ची

चेहरे की हसी भी दिखावट सी हो रही है…

chehre ki hasi bhi dikhawat si ho rahi

चेहरे की हसी भी दिखावट सी हो रही है असल ज़िन्दगी भी बनावट सी हो रही है, अनबन

अमूमन मेरी हसरत को चाहत का…

amuman meri hasrat ko chahat ka

अमूमन मेरी हसरत को चाहत का नाम दे गये लोग जीश्त को इन्तेहा ए आशिकी का पैग़ाम दे

ख़्वाबो को मेरे प्यार की ताबीर बख्श दे

khwabo ko mere pyar ki tabir

ख़्वाबो को मेरे प्यार की ताबीर बख्श दे दिल को मेरे इश्क़ की ज़ागीर बख्श दे, कब से

उलझे काँटों से कि खेले गुल ए तर से…

uljhe kaanto se ki khele gul e tar

उलझे काँटों से कि खेले गुल ए तर से पहले फ़िक्र ये है कि सबा आए किधर से

वही हुस्न ए यार में है वही लाला ज़ार में है

wahi husn e yaar me hai wahi lalazar

वही हुस्न ए यार में है वही लाला ज़ार में है वो जो कैफ़ियत नशे की मय ए