दरबार ए वतन में जब एक दिन सब…

darbar e watan me jab ek din sab khaaq nasheen

दरबार ए वतन में जब एक दिन सब जाने वाले जाएँगे कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे,कुछ अपनी जज़ा

सज़ा पे छोड़ दिया, कुछ जज़ा पे छोड़ दिया

saza pe chhod diya kuch jaza pe chhod diya

सज़ा पे छोड़ दिया, कुछ जज़ा पे छोड़ दिया हर एक काम को अब मैंने ख़ुदा पे छोड़

उसको जाते हुए देखा था पुकारा था कहाँ

usko jaate hue dekha tha pukara tha kahan

उसको जाते हुए देखा था पुकारा था कहाँ रोकते किस तरह वो शख़्स हमारा था कहाँ, थी कहाँ

जब भी तुझ को याद किया…

jab bhi tujhko yaad kiya

जब भी तुझ को याद किया ख़ुद को ही नाशाद किया, दिल की बस्ती उजड़ी तो दर्द से

दर्द अब वो नहीं रहें जो ऐ दिल ए नादां पहले था

dard ab wo nahi rahe jo ae dil e nadaan pahle tha

दर्द अब वो नहीं रहें जो ऐ दिल ए नादां पहले था खुले सर पर मेरे भी कभी

देखोगे हमें रोज़ मगर बात न होगी

dekhoge hame roz magar baat na hogi

देखोगे हमें रोज़ मगर बात न होगी एक शहर में रह कर भी मुलाक़ात न होगी, कहना है

इश्क़ मैंने लिख डाला क़ौमीयत के ख़ाने में

ishq maine likh daala qaumiyat ke khaane me

इश्क़ मैंने लिख डाला क़ौमीयत के ख़ाने में और तेरा दिल लिखा शहरियत के ख़ाने में, मुझको तजरबों

नदी में बहते थे नीलम ज़मीन धानी थी

nadee me bahte the neelam zamin dhani thi

नदी में बहते थे नीलम ज़मीन धानी थी तुम्हारे वायदे की रंगत जो आसमानी थी, वफ़ा को दे

माना कि यहाँ अपनी शनासाई भी कम है

maana ki yahan apni shanaasaai bhi kam hai

माना कि यहाँ अपनी शनासाई भी कम है पर तेरे यहाँ रस्म ए पज़ीराई भी कम है, हाँ

राहत ए वस्ल बिना हिज्र की शिद्दत के बग़ैर

rahat e vasl bina hizr ki shiddat

राहत ए वस्ल बिना हिज्र की शिद्दत के बग़ैर ज़िंदगी कैसे बसर होगी मोहब्बत के बग़ैर, अब के