कभी झूठे सहारे ग़म में रास आया…

kabhi jhuthe sahare gam me raas aaya nahi kar..

कभी झूठे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते ये बादल उड़ के आते हैं मगर साया नहीं

पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना

paigambaron ki raah par chal kar na dekhna

पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना या फिर चलो तो राह के पत्थर न देखना, पढ़ते

एक पल के लिए एक घड़ी के लिए

ek pal ke liye ek ghadi ke liye

एक पल के लिए एक घड़ी के लिए वक़्त रुकता ही नहीं किसी के लिए, रात कितनी भी

गमों का लुत्फ़ उठाया है खुशी…

gamon ka lutf uthaya hai khushi ka jaam baandha hai

गमों का लुत्फ़ उठाया है खुशी का जाम बाँधा है तलाश ए दर्द से मंज़िल का हर एक

आँख से टूट कर गिरी थी नींद

aankh se tut kar giri thi neend

आँख से टूट कर गिरी थी नींद वो जो मदहोश हो चुकी थी नींद, मेरी आँखों के क्यूँ

नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है

naqaab chehron pe sajaaye hue

नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है अपनी करतूत छुपाये हुए आ जाते है, घर निकले कोई

यूँ अपनी गज़लों में न जताता कि…

yun apni gazalon me na jatata ki

यूँ अपनी गज़लों में न जताता कि मोहब्बत क्या है गर मिलते तो कर के दिखाता कि मोहब्बत

आयत ए हिज्र पढ़ी और रिहाई पाई

ayat e hizr padhi aur rihai paai

आयत ए हिज्र पढ़ी और रिहाई पाई हमने दानिस्ता मुहब्बत में जुदाई पाई, जिस्म ओ इस्म था जो

लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे

laai hai kis muqam pe ye zindagi mujhe

लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे महसूस हो रही है ख़ुद अपनी कमी मुझे, देखो तुम

ख़ुशी ने मुझको ठुकराया है दर्द ओ गम ने पाला है

khushi ne mujhko thukraya hai dard o gam ne pala hai

ख़ुशी ने मुझको ठुकराया है दर्द ओ गम ने पाला है गुलो ने बे रुखी की है तो