सरहदों पर है अपने जवानों का गम
सरहदों पर है अपने जवानों का गम और बस्ती में जलते मकानों का गम, फिर से ये गंदी
Occassional Poetry
सरहदों पर है अपने जवानों का गम और बस्ती में जलते मकानों का गम, फिर से ये गंदी
जिस तरह चढ़ता है उसी तरह उतरता है चोटियों पर सदा के लिए कौन ठहरता है ? बहुत
दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की और दामन ए क़ातिल की हवा और तरह की,
ऐ वक़्त ज़रा थम जा ये कैसी रवानी है आँखों में अभी बाक़ी एक ख्वाब ए जवानी है,
दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों मर जाइये जो ऐसे में तन्हाइयाँ भी हों, आँखों
उनसे मिलिए जो यहाँ फेर बदल वाले है हमसे मत बोलिए हम लोग गज़ल वाले है, कैसे शफ़्फ़ाफ
नज़र फ़रेब ए क़ज़ा खा गई तो क्या होगा हयात मौत से टकरा गई तो क्या होगा ?
चाँद पर बस्तियाँ तो बसा लोगे मगर चाँदनी कहाँ से लाओगे ? सलब कर लीं समाअतें सबकी किस
धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैंने देखा है कोई तो है जिसे अपने मे पलते मैंने देखा है,
आज ज़रा फुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया बंद गली के आख़िरी घर को आज फिर