तेरे हुस्न की ख़ैर बना दे एक दिन का सुल्तान मुझे
तेरे हुस्न की ख़ैर बना दे एक दिन का सुल्तान मुझे आँखों को बस देखने दे और होंठों
Occassional Poetry
तेरे हुस्न की ख़ैर बना दे एक दिन का सुल्तान मुझे आँखों को बस देखने दे और होंठों
ख़ुशी देखते हैं न ग़म देखते हैं हम अंदाज़ ए अहल ए करम देखते हैं, हर एक शय
आए हैं सराए में तो घर जाएँगे क्या है हम लोग किसी रोज़ गुज़र जाएँगे क्या है हम
माशूक़ अजब चीज़ है दे जिसको ख़ुदा दे हँसते को रुला दे यही रोते को हँसा दे, मशहूर
कुछ अब की बार तो ऐसा बिफर गया पानी बहा के ले गया हर शय जिधर गया पानी,
फ़क़ीराना तबीअत थी बहुत बेबाक लहजा था कभी मुझ में भी हँसता खेलता एक शख़्स रहता था, बगूले
हम को किस के ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही किस ने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी
पढ़िए सबक़ यही है वफ़ा की किताब का काँटे करा रहे हैं तआरुफ़ गुलाब का, कैसा ये इंतिशार
उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है परिंदा शाम के पुल पर बहुत ख़ामोश बैठा है, मैं
घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे वो गुलाबी कटोरे छलक जाएँगे, हम ने अल्फ़ाज़ को आइना कर