झूठी हँसी तेरा मुस्कुराना झूठा…
झूठी हँसी तेरा मुस्कुराना झूठा यार तेरा तो हर एक बहाना झूठा, कैसे ऐतबार करूँ फिर से तुझ
Occassional Poetry
झूठी हँसी तेरा मुस्कुराना झूठा यार तेरा तो हर एक बहाना झूठा, कैसे ऐतबार करूँ फिर से तुझ
आज के माहौल में इंसानियत बदनाम है ये इनाद ए बाहमी का ही फ़क़त अंजाम है, हक़ शनासी
तुख़्म ए नफ़रत बो रहा है आदमी आदमियत खो रहा है आदमी, ज़िंदगी का नाम है जेहद ए
अगर सफ़र में मेरे साथ मेरा यार चले तवाफ़ करता हुआ मौसम ए बहार चले, लगा के वक़्त
बूढ़ा टपरा, टूटा छप्पर और उस पर बरसातें सच उसने कैसे काटी होंगी, लंबी लंबी रातें सच, लफ़्जों
समझ रहे थे कि अपनी सुधर गई दुनियाँ हमें तो मुफ़्त में बदनाम कर गई दुनियाँ, मुतालबों से
मैं दहशतगर्द था मरने पे बेटा बोल सकता है हुकूमत के इशारे पे तो मुर्दा बोल सकता है,
ये संसद है यहाँ भगवान का भी बस नहीं चलता जहाँ पीतल ही पीतल हो वहाँ पारस नहीं
अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं जो शायर हैं वो महफ़िल में दरी चादर उठाते
हर एक आवाज़ अब उर्दू को फ़रियादी बताती है यह पगली फिर भी अब तक ख़ुद को शहज़ादी