वो जिस का अक्स लहू को जगा दिया करता…
वो जिस का अक्स लहू को जगा दिया करता मैं ख़्वाब ख़्वाब में उस को सदा दिया करता,
Occassional Poetry
वो जिस का अक्स लहू को जगा दिया करता मैं ख़्वाब ख़्वाब में उस को सदा दिया करता,
अब तो बस ये जान है मौला बाक़ी झूठी शान है मौला, गम का कोई निशाँ नहीं है
क्या आँधियाँ बड़ी आने वाली है क्या कुछ बुरा होने वाला है ? इन्सान पहले से कुछ नहीं
क्या बताते हैं इशारात तुम्हें क्या मा’लूम कितने मश्कूक हैं हालात तुम्हें क्या मा’लूम ? ये उलझते हुए
उसके नज़दीक ग़म ए तर्क ए वफ़ा कुछ भी नहीं मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी
उसकी चाह में नाम नहीं आने वाला अब मेरा अंजाम नहीं आने वाला, हुस्न से काम पड़ा है
ज़िन्दगी से एक दिन मौसम खफ़ा हो जाएँगे रंग ए गुल और बू ए गुल दोनों हवा हो
मरीज़ ए इश्क़ का मर्ज़ वो बुखार बताते हैं शख़्स एक है पर क़ातिल बेशुमार बताते हैं, नशा
ज़िंदगी दर्द की कहानी है चश्म ए अंजुम में भी तो पानी है, बेनियाज़ाना सुन लिया ग़म ए
अचानक दिलरुबा मौसम का दिल आज़ार हो जाना दुआ आसाँ नहीं रहना सुख़न दुश्वार हो जाना, तुम्हें देखें