तेरी सूरत निगाहों में फिरती रहे
तेरी सूरत निगाहों में फिरती रहे इश्क़ तेरा सताए तो मैं क्या करूँ ? कोई इतना तो आ
Occassional Poetry
तेरी सूरत निगाहों में फिरती रहे इश्क़ तेरा सताए तो मैं क्या करूँ ? कोई इतना तो आ
नाज़ उसके उठाता हूँ रुलाता भी मुझे है ज़ुल्फो में सुलाता भी, जगाता भी मुझे है, आता है
लोग सह लेते थे हँस कर कभी बेज़ारी भी अब तो मश्कूक हुई अपनी मिलन सारी भी, वार
कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ साथ लाया हूँ उसी को जिसे खोना है यहाँ,
शाम आई तिरी यादों के सितारे निकलेरंग ही ग़म के नहीं नक़्श भी प्यारे निकले, एक मौहूम तमन्ना
ताज़ा मोहब्बतों का नशा जिस्म ओ जाँ में है फिर मौसम ए बहार मिरे गुल्सिताँ में है, इक
आंधियाँ भी चले और दीया भी जले होगा कैसे भला आसमां के तले ? अब भरोसा करे भी
ज़मी सूखी है और पानी के भी लाले है इन्सान ही आज इन्सान के निवाले है जिनके दिलो
हैरतों के सिलसिले सोज़ ए निहाँ तक आ गए हम नज़र तक चाहते थे तुम तो जाँ तक
मैं तकिए पर सितारे बो रहा हूँ जन्म दिन है अकेला रो रहा हूँ, किसी ने झाँक कर