अंधेरा ज़ेहन का सम्त ए सफ़र जब खोने लगता है…

andhera zehan ka samt e safar jab khone lagta hai

अंधेरा ज़ेहन का सम्त ए सफ़र जब खोने लगता है किसी का ध्यान आता है उजाला होने लगता

गर हक़ चाहते हो तो फिर जंग लड़ो…

gar haq chahte ho to jang lado guhar lagane se kahan nizam badlega

गर हक़ चाहते हो तो फिर जंग लड़ो गुहार लगाने से कहाँ ये निज़ाम बदलेगा, छाँव ढूँढ़ते हो,

जाने क्यूँ अब शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते…

jaane kyun ab log khuli kitab nahi hote

जाने क्यूँ अब शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते जाने क्यूँ अब मस्त मौला मिजाज़ नहीं होते, पहले

झूठी बाते झूठे लोग, सहते रहेंगे सच्चे लोग…

jhuthi baaten jhuthe log sahte rahenge sachche log

झूठी बाते झूठे लोग, सहते रहेंगे सच्चे लोग हरियाली पर बोलेंगे, सावन के सब अँधे लोग, दो कौड़ी

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ ?

bhookh hai to sabr kar roti nahi to kya hua

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ ? आजकल दिल्ली में है ज़ेर ए बहस

इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है…

is nadi ki dhaar se thandi hawa aati to hai

इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो

नसीबो पर नहीं चलते नजीरों पर नहीं चलते…

नसीबो पर नहीं चलते

नसीबो पर नहीं चलते, नजीरों पर नहीं चलते जो सचमुच में बड़े है वो लकीरों पर नहीं चलते,

मेरे लोग ख़ेमा ए सब्र में मेरा शहर गर्द ए मलाल में…

mere log khema e sabr me mera shahar gard e malal me

मेरे लोग ख़ेमा ए सब्र में मेरा शहर गर्द ए मलाल में अभी कितना वक़्त है ऐ ख़ुदा

निहत्थे आदमी के हाथ में हिम्मत ही काफी है…

nihatthe aadmi ke hath me himmat hi kaafi hai

निहत्थे आदमी के हाथ में हिम्मत ही काफी है हवा का रुख बदलने के लिए चाहत ही काफी

दुनियाँ के लोग खुशियाँ मनाने में रह गए…

दुनियाँ के लोग खुशियाँ

दुनियाँ के लोग खुशियाँ मनाने में रह गए हम बदनसीब अश्क बहाने में रह गए, कुछ जाँ निसार