क़िताब ए ज़ीस्त में ज़हमत के बाब इतने है…

zara si umr mili hai azab itne hai

क़िताब ए ज़ीस्त में ज़हमत के बाब इतने है ज़रा सी उम्र मिली है अज़ाब इतने है, ज़फ़ा,

टूट कर बिखरे हुए इन्सान कहाँ जाएँगे ?

tut kar bikhre hue insan kahan jayenge

टूट कर बिखरे हुए इन्सान कहाँ जाएँगे ? दूर तक सन्नाटा है नादान कहाँ जाएँगे ? रिश्ते जो

किसे ख़बर थी हवा राह साफ़ करते हुए…

kise khabar thi hawa raah saaf karte hue

किसे ख़बर थी हवा राह साफ़ करते हुए मेरा तवाफ़ करेगी तवाफ़ करते हुए, मैं ऐसा हँस रहा

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे…

musafir ke raste badalte rahe muqaddar me chalna tha chalte rahe

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे मुक़द्दर में चलना था चलते रहे, कोई फूल सा हाथ काँधे पे था

एक भटके हुए लश्कर के सिवा कुछ भी नहीं…

ek bhatke hue lashkar ke siwa kuch bhi nahi

एक भटके हुए लश्कर के सिवा कुछ भी नहीं ज़िन्दगानी मेरी ठोकर के सिवा कुछ भी नहीं, आप

आओ बाँट ले सब दर्द ओ अलम…

aao baant le sab dard o alam

आओ बाँट ले सब दर्द ओ अलम कुछ तुम रख लो, कुछ हम रख ले अब पोंछ ले

वो मेरे हाल पे रोया भी मुस्कुराया भी…

wo mere haal pe roya bhi muskuraya bhi

वो मेरे हाल पे रोया भी मुस्कुराया भी अजीब शख़्स है अपना भी है पराया भी, ये इंतिज़ार

निहत्थे आदमी के हाथ में हिम्मत ही काफी है…

nihatthe aadmi ke hath me himmat hi kaafi hai

निहत्थे आदमी के हाथ में हिम्मत ही काफी है हवा का रुख बदलने के लिए चाहत ही काफी

हो मुबारक़ तुम्हे तुम्हारी उड़ान पिंजरे में…

ho mubaraq tumhe tumhari udaan pinjre me

हो मुबारक़ तुम्हे तुम्हारी उड़ान पिंजरे में अता हुए है तुम्हे दो जहाँ पिंजरे में, है सैरगाह भी

सज़दे के सिवा सर को झुकाना नहीं आता…

hamne suna tha farishte jaan lete hai

रूठे हुए लोगो को मनाना नहीं आता सज़दे के सिवा सर को झुकाना नहीं आता, पत्थर तो चलाना