मआल ए अहल ए ज़मीं बर सर ए ज़मीं आता

maaal e ahal e zamin bar sar e zamin

मआल ए अहल ए ज़मीं बर सर ए ज़मीं आता जो बे यक़ीन हैं उन को भी फिर

गुज़र गई है अभी साअत ए गुज़िश्ता भी

guzar gayi hai abhi saaat e guzishta

गुज़र गई है अभी साअत ए गुज़िश्ता भी नज़र उठा कि गुज़र जाएगा ये लम्हा भी, बहुत क़रीब

हम पस ए वहम ओ गुमाँ भी देख लेते हैं तुझे

hum pas e waham o gumaan bhi dekh

हम पस ए वहम ओ गुमाँ भी देख लेते हैं तुझे देखने वाले यहाँ भी देख लेते हैं

हम अपने आप में रहते हैं दम में दम जैसे

ham apne aap me rahte hain

हम अपने आप में रहते हैं दम में दम जैसे हमारे साथ हों दो चार भी जो हम

जो अश्क बरसा रहे हैं साहिब

jo ashk barsa rahe hai sahib

जो अश्क बरसा रहे हैं साहिब ये राएगाँ जा रहे हैं साहिब, यही तग़य्युर तो ज़िंदगी है अबस

नज़र आ रहे हैं जो तन्हा से हम

nazar aa rahe hai jo tanha se ham

नज़र आ रहे हैं जो तन्हा से हम सो यूँ है कि भर पाए दुनिया से हम, न

ज़मीं पर आसमाँ कब तक रहेगा

zamin par aasmaan kab tak rahega

ज़मीं पर आसमाँ कब तक रहेगा ये हैरत का मकाँ कब तक रहेगा ? नज़र कब आश्ना ए

जिसके साथ अपनी माँ की दुआएँ होती है

jiske saath apni maa ki duaayen hoti hai

जिसके साथ अपनी माँ की दुआएँ होती है उसके मुक़द्दर में जन्नत की हवाएँ होती है, जिसे माँ

जो कहीं ना मिले वो ख़ुशी चाहिए

jo kahin naa mile wo khushi chahiye

जो कहीं ना मिले वो ख़ुशी चाहिए दर्द चाहे कैसा भी हो बंदगी चाहिए, मुझे अब ख्वाहिश ए

ये नहर ए आब भी उस की है मुल्क ए शाम उस का

ye nahar e aab bhi us ki hai

ये नहर ए आब भी उस की है मुल्क ए शाम उस का जो हश्र मुझ पे बपा