राब्ता ज़िस्म का जब रूह से कट जाता है
राब्ता ज़िस्म का जब रूह से कट जाता है आदमी मुख्तलिफ़ हालात में बँट जाता है, देख कर
Life Status
राब्ता ज़िस्म का जब रूह से कट जाता है आदमी मुख्तलिफ़ हालात में बँट जाता है, देख कर
उम्र कहते है जिसे साँसों की एक जंज़ीर है चश्म ए बीना में हर के लम्हा नई तस्वीर
दस्तरस में न हो हालात तो फिर क्या कीजिए वक़्त दिखलाए करिश्मात तो फिर क्या कीजिए, साहब ए
जाने क्यूँ आजकल तुम्हारी कमी अखरती है बहुत यादो के बंद कमरे में ज़िन्दगी सिसकती है बहुत, पनपने
ये सोचा नहीं है कि किधर जाएँगे मगर हम अब यहाँ से गुज़र जाएँगे, इसी खौफ़ से रातों
कुछ चलेगा ज़नाब, कुछ भी नहीं चाय, कॉफ़ी, शराब, कुछ भी नहीं, चुप रहे तो कली लगे वो
हर रिश्ता यहाँ बस चार दिन की कहानी है अंज़ाम ए वफ़ा आँखों से बहता हुआ पानी है,
जी चाहे तो शीशा बन जा, जी चाहे पैमाना बन जा शीशा पैमाना क्या बनना ? मय बन
घने बादलो से जो कभी थोड़ी धूप निकलती रहती आसरे उम्मीद के मुमकिन है ज़िन्दगी चलती रहती, हुस्न
क्या करेंगे आप मेरे दिल का मंज़र देख कर ख़ामखा हैरान होंगे एक समन्दर देख कर, ये अमीरों