मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहते
मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहते दो चार क़दम चलने को चलना नहीं कहते, एक हम
Life Status
मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहते दो चार क़दम चलने को चलना नहीं कहते, एक हम
बेकार जब दुआ है दवा क्या करेगी आज ऐसे में ज़िंदगी भी वफ़ा क्या करेगी आज ? ये
बेवजह कहीं आना जाना क्या बिन बात के मुस्कुराना क्या हर शख्स दानिशमंद मिलेगा यहाँ किसी को समझाना
धरती पर जब ख़ूँ बहता है बादल रोने लगता है देख के शहरों की वीरानी जंगल रोने लगता
उदासी का ये पत्थर आँसुओं से नम नहीं होता हज़ारों जुगनुओं से भी अँधेरा कम नहीं होता, कभी
दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद हम मिट नहीं सकेंगे मिटाने के बावजूद, ये राज़ काश
ये नूर उतरेगा आख़िर ग़ुरूर उतरेगा जनाब उतरेगा बंदा हुज़ूर उतरेगा, जो चढ़ गया है वो ऊपर नहीं
तबीब हो के भी दिल की दवा नहीं करते हम अपने ज़ख़्मों से कोई दग़ा नहीं करते, परिंदे
दो चार गाम राह को हमवार देखना फिर हर क़दम पे एक नई दीवार देखना, आँखों की रौशनी
जंग जितनी हो सके दुश्वार होनी चाहिए जीत हासिल हो तो लज़्ज़तदार होनी चाहिए, एक आशिक़ कल सलामत