चाँद पर बस्तियाँ तो बसा लोगे…

chaand par bastiyan to basa loge

चाँद पर बस्तियाँ तो बसा लोगे मगर चाँदनी कहाँ से लाओगे ? सलब कर लीं समाअतें सबकी किस

दुख दर्द के मारों से मेरा ज़िक्र न करना

dukh dard ke maaron se mera zikr

दुख दर्द के मारों से मेरा ज़िक्र न करना घर जाऊँ तो यारों से मेरा ज़िक्र न करना,

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

azaab ye bhi kisi aur pe nahi aaya

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया कि एक उम्र चले और घर नहीं आया, उस एक

मज़लूमों के हक़ मे अब आवाज़…

mazlumo ke haq me ab awaz

मज़लूमों के हक़ मे अब आवाज़ उठाये कौन ? जल रही बस्तियाँ,आह ओ सोग मनाये कौन ? कौन

पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना

paigambaron ki raah par chal kar na dekhna

पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना या फिर चलो तो राह के पत्थर न देखना, पढ़ते

एक पल के लिए एक घड़ी के लिए

ek pal ke liye ek ghadi ke liye

एक पल के लिए एक घड़ी के लिए वक़्त रुकता ही नहीं किसी के लिए, रात कितनी भी

आँख से टूट कर गिरी थी नींद

aankh se tut kar giri thi neend

आँख से टूट कर गिरी थी नींद वो जो मदहोश हो चुकी थी नींद, मेरी आँखों के क्यूँ

नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है

naqaab chehron pe sajaaye hue

नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है अपनी करतूत छुपाये हुए आ जाते है, घर निकले कोई

कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है

kahin pe sukha kahin pe charo simt paani

कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है गरीब लोगों पे क़ुदरत की मेहरबानी है, हर एक शख्स

लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे

laai hai kis muqam pe ye zindagi mujhe

लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे महसूस हो रही है ख़ुद अपनी कमी मुझे, देखो तुम