सुरखाब क्या ख़रीदे असबाब क्या ख़रीदे
सुरखाब क्या ख़रीदे असबाब क्या ख़रीदे फ़ितरत फ़कीर जिसकी अलक़ाब क्या ख़रीदे, ले जा इन्हें उठा कर सौदा
Life Poetry
सुरखाब क्या ख़रीदे असबाब क्या ख़रीदे फ़ितरत फ़कीर जिसकी अलक़ाब क्या ख़रीदे, ले जा इन्हें उठा कर सौदा
फ़लक पे कितना उदास कितना तन्हा कितना बेकस सा लगा हिलाल ए ईद, हम हुजूम ए शहर में
मैं हूँ मेरी चश्म-ए-तर है रात है तन्हाई है दर्द मेरा हम-सफ़र है रात है तन्हाई है, जुगनुओं
रवैये मार देते है ये लहज़े मार देते है वही जो जान से प्यारे हैं रिश्ते मार देते
ईद मुबारक़ आगाज़ ईद है, अंज़ाम ईद है, नेक काम ईद है सच्चाई ओ हक़ पे रहे क़ायम
राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगाजी का दाग़ उजागर हो कर सूरज को शरमाएगा, शहरों को
कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहोऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश
किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगेमल्लाहो तुम परदेसी को बीच भँवर में मारोगे, मुँह
लानत है तेरी ज़िन्दगी पे नहीं तू किसी काज काशक्ल ए इंसानी में छुपा तू इब्लीस के मिजाज़
बहार रुत में उजाड़ रस्तेतका करोगे तो रो पड़ोगे, किसे से मिलने को जब भीसजा करोगे तो रो