हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और
हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और बढ़ जाएगी शायद मेरी तन्हाई ज़रा और, क्यूँ खुल गए
Life Poetry
हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और बढ़ जाएगी शायद मेरी तन्हाई ज़रा और, क्यूँ खुल गए
जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते बच्चे लेकिन सोए हुए थे किस से
दुनियाँ के लोग खुशियाँ मनाने में रह गए हम बदनसीब अश्क बहाने में रह गए, कुछ जाँ निसार
हमसे क़ीमत तो ये पूरी ही लिया करती है ज़िन्दगी ख़्वाब अधूरे ही दिया करती है, हर मुहब्बत
मुहब्बत कहाँ अब घरों में मिले यहाँ फूल भी पत्थरो में मिले, जो फिरते रहे दनदनाते हुए वही
चंद सिक्को के एवज़ हर ज़ुर्म के सबूत मिटाने वालो इक्तिदार के नशे में धूत, लोगो पे ज़ुल्म
सुनो ! दौर ए बेहिस में जब कमाली हार जाता है हरामी जीत जाते है हलाली हार जाता
एक तो ज़ालिम उसपे क़हर आँखे दिखा रहा है अंज़ाम ए बेहया शायद अब नज़दीक आ रहा है,
गम ए वफ़ा को पस ए पुश्त डालना होगा खटक रहा है जो काँटा निकालना होगा, फ़कीर ए
गुलाब चाँदनी रातों पे वार आये हम तुम्हारे होंठों का सदका उतार आये हम, वो एक झील थी