लेना देना ही क्या फिर ऐसे यारो से ?

lena-dena-hi-kya

लेना देना ही क्या फिर ऐसे यारो से ? सुख दुःख भी जब बाँटने हो दीवारों से, ज़िस्म

अब ज़िन्दगी पे हो गई भारी शरारतें…

ab zindagi pe ho gai bhari shararten

अब ज़िन्दगी पे हो गई भारी शरारतें तन्हाइयो ने छीन ली सारी शरारतें, होंठो के गुलिस्तान पे लाली

जब दुश्मनों के चार सू लश्कर निकल पड़े

jab-dushmano-ke-chaar

जब दुश्मनों के चार सू लश्कर निकल पड़े हम भी कफ़न बाँध के सर पर निकल पड़े, जिन

अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए…

ab shauq se ki jaan se guzar jana chahiye

अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए बोल ऐ हवा ए शहर किधर जाना चाहिए ?

लोग सह लेते थे हँस कर कभी बेज़ारी भी…

log-sah-lete-the

लोग सह लेते थे हँस कर कभी बेज़ारी भी अब तो मश्कूक हुई अपनी मिलन सारी भी, वार

कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ

kuch-qadam-aur-mujhe

कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ साथ लाया हूँ उसी को जिसे खोना है यहाँ,

कुछ रोज़ से रोज़ शाम बस यूँ ही ढल जाती है

kuch-roz-se-roz

कुछ रोज़ से रोज़ शाम बस यूँ ही ढल जाती है बीती हुई यादो की शमाँ मेरे सिरहाने

आंधियाँ भी चले और दीया भी जले…

charag apni thakan ki koi safai n de

आंधियाँ भी चले और दीया भी जले होगा कैसे भला आसमां के तले ? अब भरोसा करे भी

ज़मी सूखी है और पानी के भी लाले है…

zamin sukhi hai pani ke bhi lale hai

ज़मी सूखी है और पानी के भी लाले है इन्सान ही आज इन्सान के निवाले है जिनके दिलो

अज़ब मअमूल है आवारगी का…

dosto se rasaai sochenge

अज़ब मअमूल है आवारगी का गिरेबाँ झाँकती है हर गली का, न जाने किस तरह कैसे ख़ुदा ने