जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे…

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जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे, हुई शाम यादों के एक गाँव में

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र…

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है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बदमिज़ाज सी

वहशतें बिखरी पड़ी है जिस तरफ़ भी…

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वहशतें बिखरी पड़ी है जिस तरफ़ भी जाऊँ मैं घूम फिर आया हूँ अपना शहर तेरा गाँव मैं,

मुश्किल दिन भी आए लेकिन फ़र्क़….

मुश्किल दिन भी आए

मुश्किल दिन भी आए लेकिन फ़र्क़ न आया यारी में हम ने पूरी जान लगाई उस की ताबेदारी

दश्त की धूप है जंगल की घनी रातें हैं

dasht-ki-dhoop-hai

दश्त की धूप है जंगल की घनी रातें हैं इस कहानी में बहर हाल कई बातें हैं, गो

दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है

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दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है ख़ुश्क पत्ते को लिए गर्द ए सफ़र जाती है, पास

महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया

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महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया साज़ ख़ामोश हैं नग़्मात ने दम तोड़ दिया, हर मसर्रत

चेहरे पे सारे शहर के गर्द ए मलाल है…

chehre-pe-saare-shahar

चेहरे पे सारे शहर के गर्द ए मलाल है जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल

जो वफ़ा का रिवाज रखते हैं…

jo-wafa-ka-riwaz

जो वफ़ा का रिवाज रखते हैं साफ़ सुथरा समाज रखते हैं, क़ाबिल ए रहम हैं वो इंसाँ जो

ख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त से न जोड़ा जाए

ख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त

ख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त से न जोड़ा जाए आईना है इसे पत्थर से न तोड़ा जाए, अब भी