नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है

naqaab chehron pe sajaaye hue

नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है अपनी करतूत छुपाये हुए आ जाते है, घर निकले कोई

कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है

kahin pe sukha kahin pe charo simt paani

कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है गरीब लोगों पे क़ुदरत की मेहरबानी है, हर एक शख्स

लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे

laai hai kis muqam pe ye zindagi mujhe

लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे महसूस हो रही है ख़ुद अपनी कमी मुझे, देखो तुम

ख़ुशी ने मुझको ठुकराया है दर्द ओ गम ने पाला है

khushi ne mujhko thukraya hai dard o gam ne pala hai

ख़ुशी ने मुझको ठुकराया है दर्द ओ गम ने पाला है गुलो ने बे रुखी की है तो

इश्क़ मैंने लिख डाला क़ौमीयत के ख़ाने में

ishq maine likh daala qaumiyat ke khaane me

इश्क़ मैंने लिख डाला क़ौमीयत के ख़ाने में और तेरा दिल लिखा शहरियत के ख़ाने में, मुझको तजरबों

माना कि यहाँ अपनी शनासाई भी कम है

maana ki yahan apni shanaasaai bhi kam hai

माना कि यहाँ अपनी शनासाई भी कम है पर तेरे यहाँ रस्म ए पज़ीराई भी कम है, हाँ

हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे

har ek baat na kyun zahar si

हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे कि हमको दस्त ए ज़माना से ज़ख़्मकारी लगे, उदासियाँ

आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो

aadam ki jaat ho kar ilm bisra rahe

आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो क्यूँ मज़लूम ओ गरीब को बेवजह सता रहे हो ?

इंसानी सोच का मौसम बदलता रहता है

insani soch ka mausam badalta rahta hai

इंसानी सोच का मौसम बदलता रहता है फ़ितूरी दिमाग बेकाम भी चलता रहता है, ज़रा सी ओट ही

मैं सुन रहा हूँ जो दुनियाँ सुना रही है मुझे

main sun raha hoo jo duniyan suna rahi hai

मैं सुन रहा हूँ जो दुनियाँ सुना रही है मुझे हँसी तो अपनी ख़ामोशी पे आ रही है