क्या ग़म के साथ हम जिएँ और क्या ख़ुशी के साथ
क्या ग़म के साथ हम जिएँ और क्या ख़ुशी के साथ जो दिल को दे सुकून गुज़र हो
Life Poetry
क्या ग़म के साथ हम जिएँ और क्या ख़ुशी के साथ जो दिल को दे सुकून गुज़र हो
दिल ए बरहम की ख़ातिर मुद्दआ कुछ भी नहीं होता अजब हालत है अब शिकवा गिला कुछ भी
किसी भी शय पे आ जाने में कितनी देर लगती है मगर फिर दिल को समझाने में कितनी
है बहुत मूड में इस वक़्त दिल ए ज़ार चलो तुम मेरे साथ चलो और लगातार चलो, भाड़
जैसा हूँ स्वीकार तुम्हीं तो करती हो बिना शर्त के प्यार तुम्हीं तो करती हो, अपनी दिलकश अदा
ज़ख़्मों ने मुझ में दरवाज़े खोले हैं मैंने वक़्त से पहले टाँके खोले हैं, बाहर आने की भी
मैंने ये कब कहा है कि वो मुझ को तन्हा नहीं छोड़ता छोड़ता है मगर एक दिन से
न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है कि उस से हम ने तुझे देखने की करनी
ज़िंदगी की यही कहानी है साँस आनी है और जानी है, तुम जो होते तो बात कुछ होती
हमें बर्बादियों पे मुस्कुराना ख़ूब आता है अँधेरी रात में दीपक जलाना ख़ूब आता है, ग़लत फ़हमी तुम्हें