गूंगी हो गई आज कुछ ज़ुबान कहते कहते
गूंगी हो गई आज कुछ ज़ुबान कहते कहते हिचकिचा गया मैं ख़ुद को मुसलमान कहते कहते, ये बात
Islamic Poetry
गूंगी हो गई आज कुछ ज़ुबान कहते कहते हिचकिचा गया मैं ख़ुद को मुसलमान कहते कहते, ये बात
हो मोमिनों को हमेशा ही पयाम ए ईद मुबारक गगन के पार से आया है सलाम ए ईद
हमारी वजह ए ज़वाल क्या है ? सवाल ये है हराम क्या है, हलाल क्या है ? सवाल
बुग्ज़ ए इस्लाम में पड़े पड़े ही यहाँ कितनो के क़िरदार गिरे है, सभी मुन्सफ़ गिरे, मनसब गिरे
कितनी मोहब्बतों से पहला सबक़ पढ़ाया मैं कुछ न जानता था सब कुछ मुझे सिखाया, अनपढ़ था और
नेक बच्चे दिल से करते हैं अदब उस्ताद का बाप की उल्फ़त से बेहतर है ग़ज़ब उस्ताद का,
तलाश ए जन्नत ओ दोज़ख में रायेगाँ इंसाँ तलाश ए जन्नत ओ दोज़ख में रायेगाँ इंसाँ ज़मीं पे
कौन है नेक ? कौन बद है यहाँ ? किसी के हाथों में ये सनद है कहाँ ?
दुनियाँ की बुलंदी के तलबगार नहीं हैं हम अहल ए ख़िरद तेरे परस्तार नहीं हैं, बरगद की तरह
रिहा कर मुझे या सज़ा दे ऐ आदिल कोई तो फ़ैसला तू सुना दे ऐ आदिल, यूँ असीरी