बेवफ़ा तुम को भुलाने में तकल्लुफ़ कैसा
बेवफ़ा तुम को भुलाने में तकल्लुफ़ कैसा आइना सच का दिखाने में तकल्लुफ़ कैसा तीरगी घर की मिटाने
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बेवफ़ा तुम को भुलाने में तकल्लुफ़ कैसा आइना सच का दिखाने में तकल्लुफ़ कैसा तीरगी घर की मिटाने
बताओ दिल की बाज़ी में भला क्या बात गहरी थी ? कहा, यूँ तो सभी कुछ ठीक था
अपने अंदाज़ में औरों से जुदा लगते हो सब बला लगते हैं तुम रद ए बला लगते हो,
नाम ए मुहब्बत का यही इस्तिआरा है जो नहीं है हासिल वही होता हमारा है, माज़ी में छोड़
ये ज़हमत भी तो रफ़्ता रफ़्ता रहमत हो ही जाती है मुसलसल गम से गम सहने की आदत
बसा तो लेते नया दिल में हम मकीं लेकिन मिला न आप से बढ़ कर कोई हसीं लेकिन,
ये न समझो ये ख्याल है मेरा जो सुनाता हूँ वो हाल है मेरा, ऐसा गम हूँ मैं
सूरमाओं को सर ए आम से डर लगता है अब इंक़लाब को अवाम से डर लगता है, हमीं
आहिस्ता चल ऐ ज़िन्दगी अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाक़ी है, कुछ दर्द मिटाना बाक़ी है कुछ फर्ज़ निभाना
हर एक शख़्स परेशान ओ दर बदर सा लगे ये शहर मुझको तो यारो कोई भँवर सा लगे,