मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल ए ख़ाम है क्या
मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल ए ख़ाम है क्या तेरा बदन कोई शमशीर ए बे नियाम है
Ghazals
मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल ए ख़ाम है क्या तेरा बदन कोई शमशीर ए बे नियाम है
तेरी सूरत निगाहों में फिरती रहे इश्क़ तेरा सताए तो मैं क्या करूँ ? कोई इतना तो आ
तन्हा सफ़र में खुद को यूँ ही चलते देखा भीड़ भरी दुनियाँ में खुद को संभलते देखा, ना
तेरी जुदाई ने ये क्या बना दिया है मुझे मैं भी जिस्म था साया बना दिया है मुझे,
न वो मिलता है न मिलने का इशारा कोई कैसे उम्मीद का चमकेगा सितारा कोई ? हद से
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है,
हम सादा ही ऐसे थे की यूँ ही पज़ीराई जिस बार ख़िज़ाँ आई समझे कि बहार आई, आशोब
गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था,
न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है न करम है हम पे
नए मौसम को क्या होने लगा है कि मिट्टी में लहू बोने लगा है, कोई क़ीमत नहीं थी