क़िस्से मेरी आशुफ़्ता नवाई के बहुत थे
क़िस्से मेरी आशुफ़्ता नवाई के बहुत थे चर्चे तेरी अंगुश्त नुमाई के बहुत थे, दुनिया की तलब ही
Ghazals
क़िस्से मेरी आशुफ़्ता नवाई के बहुत थे चर्चे तेरी अंगुश्त नुमाई के बहुत थे, दुनिया की तलब ही
दिल से मंज़ूर तेरी हम ने क़यादत नहीं की ये अलग बात अभी खुल के बग़ावत नहीं की,
नज़र नज़र से मिला कर कलाम कर आया ग़ुलाम शाह की नींदें हराम कर आया, कई चराग़ हवा
वो मेरे ख़्वाब की ताबीर तो बताए मुझे मैं धूप में हूँ मगर ढूँढते हैं साए मुझे, मैं
मुश्किल है कि अब शहर में निकले कोई घर से दस्तार पे बात आ गई होती हुई सर
बहुत मुमकिन था हम दो जिस्म और एक जान हो जाते मगर दो जिस्म सिर्फ़ एक जान से
तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ अब के किसी बेनाम से मौसम की तरह आ,
दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है तेरी जुदाई का मंज़र अभी निगाह में है, तेरे
बख़्श दे कुछ तो एतिबार मुझे प्यार से देख चश्म ए यार मुझे, रात भी चाँद भी समुंदर
ज़ख़्म पुराने फूल सभी बासी हो जाएँगे दर्द के सब क़िस्से याद ए माज़ी हो जाएँगे, साँसें लेती