वो अहद अहद ही क्या है जिसे निभाओ भी
वो अहद अहद ही क्या है जिसे निभाओ भी हमारे वादा ए उलफ़त को भूल जाओ भी भला
Ghazals
वो अहद अहद ही क्या है जिसे निभाओ भी हमारे वादा ए उलफ़त को भूल जाओ भी भला
क़िस्सा अभी हिजाब से आगे नहीं बढ़ा मैं आप, वो जनाब से आगे नहीं बढ़ा, मुद्दत हुई किताब
हम तुम्हारे ग़म से बाहर आ गए हिज्र से बचने के मंतर आ गए, मैं ने तुम को
जब किसी एक को रिहा किया जाए सब असीरों से मशवरा किया जाए, रह लिया जाए अपने होने
जाने वाले से राब्ता रह जाए घर की दीवार पर दिया रह जाए, एक नज़र जो भी देख
अश्क ज़ाएअ हो रहे थे देख कर रोता न था जिस जगह बनता था रोना मैं उधर रोता
तारीकियों को आग लगे और दिया जले ये रात बैन करती रहे और दिया जले, उसकी ज़बाँ में
फिर रफ़ूगर ने भी ये कह के मुझे मोड़ दिया जा यहाँ पर तो कोई ज़ख़्म नहीं सिलते
किसी से ख़ुश है किसी से ख़फ़ा ख़फ़ा सा है वो शहर में अभी शायद नया नया सा
जहाँ न तेरी महक हो उधर न जाऊँ मैं मेरी सरिश्त सफ़र है गुज़र न जाऊँ मैं, मेरे