इल्म ओ हुनर से क़ौम को रग़बत नहीं रही
इल्म ओ हुनर से क़ौम को रग़बत नहीं रही इस पर शिकायतें कि फ़ज़ीलत नहीं रही, बदलेगा क्या
Gazals
इल्म ओ हुनर से क़ौम को रग़बत नहीं रही इस पर शिकायतें कि फ़ज़ीलत नहीं रही, बदलेगा क्या
पिछले किसी सफ़र का सितारा न ढूँढ ले फिर से कहीं वो साथ हमारा न ढूँढ ले, जिस
दिल के अंदर एक ज़रा सी बे कली है आज भी जो मेरे अफ़्कार में रस घोलती है
मेरे चेहरे में कोई और ही चेहरा देखे वक़्त माथे की लकीरों में वो ठहरा देखे, सब को
कहता रहे ज़माना गुनहगार ज़िंदगी कुछ लोग जी रहे हैं मज़ेदार ज़िंदगी, किरदार अपना अपना निभाते हैं सब
हर किसी की है ज़बानी दोस्ती क्या किसी की आज़मानी दोस्ती, थे मुसाफ़िर दो अलग रस्तों के हम
मिल के बैठें तो हम कहीं पहले बाँट लेते हैं क्यूँ ज़मीं पहले ? होगा तेरा भी एतिबार
अक़्ल की ऐसी ताबेदारी है ख़्वाहिशों में भी इंकिसारी है, चल पड़ी है अजल की राहों पर ज़िंदगी
हैं मेरी परवाज़ के तेवर नए साथ मेरे देखिए मंज़र नए, एक पुराने मयकदे में तिश्नगी ढूँढती है
कोई काबा न कलीसा न सनम मेरा है एक नए ख़्वाब की धरती पे क़दम मेरा है, सारी