रवैये मार देते है ये लहज़े मार देते है…
रवैये मार देते है ये लहज़े मार देते है वही जो जान से प्यारे हैं रिश्ते मार देते
Gazals
रवैये मार देते है ये लहज़े मार देते है वही जो जान से प्यारे हैं रिश्ते मार देते
कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती, क़ीमत
आये जो वो तो दिल के सब अरमान मचल गएबुझते हुए चिराग़ ए वफ़ा फिर से जल गए,
राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगाजी का दाग़ उजागर हो कर सूरज को शरमाएगा, शहरों को
पीत करना तो हम से निभाना सजनहम ने पहले ही दिन था कहा ना सजन, तुम ही मजबूर
लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुएहम हर बुर्ज में घटते घटते सुब्ह तलक गुमनाम हुए,
कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहोऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश
किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगेमल्लाहो तुम परदेसी को बीच भँवर में मारोगे, मुँह
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेराकुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा
ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैंये तज़किरे तेरी लुत्फ़ के हैं ये शेर तेरी