हम मुसाफ़िर यूँ ही मसरूफ़ ए सफ़र जाएँगे

ham musafir yun hi masroof e safar

हम मुसाफ़िर यूँ ही मसरूफ़ ए सफ़र जाएँगे बे निशाँ हो गए जब शहर तो घर जाएँगे, किस

तेरी उम्मीद तेरा इंतिज़ार जब से है

teri ummid tera intizar jab se hai

तेरी उम्मीद तेरा इंतिज़ार जब से है न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से

तुम आए हो न शब ए इंतिज़ार गुज़री है

Tum Aye ho na

तुम आए हो न शब ए इंतिज़ार गुज़री है तलाश में है सहर बार बार गुज़री है, जुनूँ

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी

Kab Thahrega Dard e

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी, कब

तुझे पुकारा है बे इरादा

तुझे पुकारा है बे

तुझे पुकारा है बे इरादा जो दिल दुखा है बहुत ज़ियादा, नदीम हो तेरा हर्फ़ ए शीरीं तो

फिर हरीफ़ ए बहार हो बैठे

फिर हरीफ़ ए बहार

फिर हरीफ़ ए बहार हो बैठे जाने किस किस को आज रो बैठे, थी मगर इतनी राएगाँ भी

हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने

हर सम्त परेशाँ तिरी

हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने धोके दिए क्या क्या हमें बाद ए सहरी ने, हर मंजिल

हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है

हम-पर-तुम्हारी-चाह

हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है,

हम सादा ही ऐसे थे की यूँ ही पज़ीराई

हम सादा ही ऐसे

हम सादा ही ऐसे थे की यूँ ही पज़ीराई जिस बार ख़िज़ाँ आई समझे कि बहार आई, आशोब

गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था

गो सब को बहम

गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था,