तस्कीन न हो जिस में वो राज़ बदल डालो
तस्कीन न हो जिस में वो राज़ बदल डालो जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो, तुम
Allama Iqbal
तस्कीन न हो जिस में वो राज़ बदल डालो जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो, तुम
गुलामी में काम आती शमशीरें न तदबीरें जो हो ज़ौक ए यकीं पैदा तो कट जाती हैं जंज़ीरें,
गूंगी हो गई आज कुछ ज़ुबान कहते कहते हिचकिचा गया मैं ख़ुद को मुसलमान कहते कहते, ये बात
दिल सोज़ से खाली है, निगह पाक नहीं है फिर इसमें अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है,
अफ़लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर करते हैं ख़िताब आख़िर उठते हैं हिजाब आख़िर, अहवाल ए
अनोखी वज़अ है सारे ज़माने से निराले हैं ये आशिक कौन सी बस्ती के या रब ! रहने
अजब वायज़ की दींदारी है या रब ! अदावत है इसे सारे जहाँ से, कोईअब तक न यह
ज़माना आया है बेहिजाबी का आम दीदार ए यार होगा सुकूत था पर्दादार जिसका वो राज़ अब आश्कार
ख़िरद मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या हैकि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा
तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँमेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ, सितम हो कि हो वादा ए बे