दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला

dost-ban-kar-bhi

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला, अब उसे लोग

दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें

dukh-fasana-nahi-ki

दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें दिल भी माना नहीं कि तुझ से कहें, आज तक अपनी

अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए…

ab shauq se ki jaan se guzar jana chahiye

अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए बोल ऐ हवा ए शहर किधर जाना चाहिए ?

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं…

abhi kuch aur karishme gazal ke dekhte hai

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं ‘फ़राज़’ अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं, जुदाइयाँ तो

जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना…

jo chal sako to koi aisi chaal chal jaana

जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना,

किताबों में मेरे फ़साने ढूँढते हैं…

kitabo me mere fasane dhoondhte hai

किताबों में मेरे फ़साने ढूँढते हैं नादां हैं गुज़रे ज़माने ढूँढते हैं, जब वो थे तलाश ए ज़िंदगी

अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन…

ab ke rut badali to khushboo ka safar dekhega kaun

अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन ज़ख़्म फूलों की तरह महकेंगे पर देखेगा कौन

न शब ओ रोज़ ही बदले है न हाल अच्छा है…

na shab o roz hi badle naa haal achcha hai

न शब ओ रोज़ ही बदले है न हाल अच्छा है किस ब्राह्मण ने कहा था कि ये

ग़ैरत ए इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी…

gairat e ishq slamat thi ana zinda thi

ग़ैरत ए इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी वो भी दिन थे कि रह ओ रस्म ए वफ़ा

रोग ऐसे भी गम ए यार से लग जाते है…

rog aise bhi gam e yaar se lag jate hai

रोग ऐसे भी गम ए यार से लग जाते है दर से उठते है तो दीवार से लग