जब मुझको सब क़ुबूल था, तुम क्यों चले गए ?
ये भी कोई उसूल था ? तुम क्यों चले गए ?जब मुझको सब क़ुबूल था, तुम क्यों चले
ये भी कोई उसूल था ? तुम क्यों चले गए ?जब मुझको सब क़ुबूल था, तुम क्यों चले
हसीन रुत में गुलाब चेहरोंमुझे बताओ उदास क्यों हो ? दिलो पे बीती हुई कहानीमुझे सुनाओ उदास क्यों
सवाल ये नहीं कि वो पुकार क्यों नहीं रहासवाल है कि उसको ऐतबार क्यों नहीं रहा ? ये
हकीक़त है या फ़साना मुहब्बतपतंगे का ख़ुद को जलाना मुहब्बत जो तारीफ़ ए फ़रहाद शिरीन से पूछेतो बोली
ग़ज़ल का हुस्न और गीत का शबाब है वोनशा है जिसमे सुखन का वही शराब है वो उसे
ऐसा कोई लम्हा होता जिसमे तन्हा होते हमचुपके चुपके करते बातें यूँ न रुसवा होते हम, पूरा हर
हमें दरियाफ़त करने से हमें तसखीर करने तकबहुत है मरहले बाक़ी, हमें जंज़ीर करने तक, हमारे हिज़्र के
गर करो जहाँ में किसी से भी दोस्तीतो फिर ताउम्र उसको धोखा मत देना, खिला कर लबो पर
दुनियाँ के फ़िक्र ओ गम से आज़ाद किया शुक्रियाऐ दोस्त ! तेरा और तेरी दोस्ती का शुक्रिया ,
ऐ दोस्त तूने दोस्ती का हक़ अदा कियाअपनी ख़ुशी लुटा कर मेरा गम घटा दिया, कहने को तो