मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने

mohabbat tark ki mai

मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी

दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ

door rah kar na

दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ याद रह जाएगी ये रात क़रीब आ जाओ, एक

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से

dekha hai zindagi ko

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से, ऐ रूह-ए-अस्र जाग

मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी

milti hai zindagi me

मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी होती है दिलबरों की इनायत कभी कभी, शर्मा के मुँह न

हर तरह के जज़्बात का एलान हैं आँखें

har tarah ke zajbat

हर तरह के जज़्बात का एलान हैं आँखें शबनम कभी शो’ला कभी तूफ़ान हैं आँखें, आँखों से बड़ी

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो

tum apna ranj o

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे

चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है

chehre pe khushi chha

चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है जब तुम मुझे अपना कहते हो

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम

tang aa chuke hai

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम, मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न

ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा

ye zulf agar khul

ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा इस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा, जिस

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया

main zindagi ka saath

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया, बर्बादियों का सोग