अहल ए उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है

अहल ए उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है
लैला मजनूँ की मिसालों पे हँसी आती है,

जब भी तकमील ए मोहब्बत का ख़याल आता है
मुझ को अपने ही ख़यालों पे हँसी आती है,

लोग अपने लिए औरों में वफ़ा ढूंढ़ते हैं
उन वफ़ा ढूँढने वालों पे हँसी आती है,

देखने वालो तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हें तो देखने वालों पे हँसी आती है,

चाँदनी रात मोहब्बत में हसीं थी फ़ाकिर
अब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है..!!

~सुदर्शन फ़ाकिर

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