अब ख़ाक तो किया है दिल को जला जला कर
करते हो इतनी बातें क्यूँ तुम बना बना कर ?
आशिक़ के घर की तुम ने बुनियाद को बिठाया
ग़ैरों को पास अपने हर दम बिठा बिठा कर,
ये भी कोई सितम है ये भी कोई करम है
ग़ैरों पे लुत्फ़ करना हम को दिखा दिखा कर,
ऐ बुत न मुझ को हरगिज़ कूचे से अब उठाना
आया हूँ याँ तलक मैं ज़ालिम ख़ुदा ख़ुदा कर,
देता हूँ मैं इधर जी अपना तड़प तड़प कर
देखे है वो उधर को आँखें चुरा चुरा कर,
कोई आश्ना नहीं है ऐसा कि बा वफ़ा हो
कहते हो तुम ये बातें हम को सुना सुना कर,
जलता था सीना मेरा ऐ शम्अ तिस पे तूने
दूनी लगाई आतिश आँसू बहा बहा कर,
एक ही निगाह कर कर सीने से ले गया वो
हर चंद दिल को रखा हमने छुपा छुपा कर,
जुरअत ने आख़िर अपने जी को भी अब गँवाया
इन बेमुरव्वतों से दिल को लगा लगा कर..!!
~जुरअत क़लंदर बख़्श