मुझे तलाश थी जिस की वही कभी न मिली
हर एक चीज़ मिली एक ज़िंदगी न मिली,
तेरी तलाश में पैरों में पड़ गए छाले
मगर ऐ मंज़िल ए मक़्सूद तू कभी न मिली,
ख़ुशी से दोस्ती मेरी भी थी मगर एक दिन
ख़फ़ा हुई वो कुछ ऐसी कि फिर कभी न मिली,
वो जिस चराग़ के दम से मकान रौशन था
उसी चराग़ को ख़ुद अपनी रौशनी न मिली,
तुम्हारे हिज्र में ऐसा भी वक़्त आया है
बदन टटोल के देखा तो नब्ज़ ही न मिली,
ये जिस्म है कि फ़क़त शोर गुल है साँसों का
ये आँख है कि कोई ख़्वाब देखती न मिली,
दिल ओ दिमाग़ पे हावी रहा ग़म ए दौराँ
ख़ुशी के साथ भी रह कर मुझे ख़ुशी न मिली,
मुझे न मिल सका सूरज मेरे मुकद्दर का
तेरा नसीब तुझे मेरी चाँदनी न मिली..!!
~चाँदनी पांडे

























