बदन को काटता है दुख, मलाल नोचते हैं

बदन को काटता है दुख, मलाल नोचते हैं
ये दर्द भेड़िए हैं और खाल नोचते हैं,

अज़ाब ए हिज्र में आँखें उजड़ गईं जिनकी
वो बेबसी है कि अपने अपने बाल नोचते हैं,

यहाँ के लोगों की आदत है कूफ़ियों जैसी
रिदायें छीनते हैं और छाल नोचते हैं,

जवाज़ कौन सा दूँगी बिछड़ के लोगों को
तुम्हारे बाद तो सबके सवाल नोचते हैं,

तुम्हारी याद यूँ लेती हैं चुटकियां दिल में
के जैसे प्यार से बच्चों के गाल नोचते हैं..!!

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